Thursday, January 1, 2009

माजी

माजी  मेरा  इस  वक़्त  के  परे  नज़र  आता  हँi
कभी  तू  और  कभी  तेरी  तस्वीर  का  तसवूर  जो  आता   है 
सन्नाटा  भी  एक  शोर  की   मानिंद  दह्षा t फैला  जाता  है 
आसरा  ढून्ढ  रहा  हु  कब  से  पैर  कोई  किनारा  नज़र  नहीं  आता  है 
मर  के  देखे  सोचा  पर सुकून  फिर  भी  नहीं  आता  है i aata hai

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