माजी मेरा इस वक़्त के परे नज़र आता हँi
कभी तू और कभी तेरी तस्वीर का तसवूर जो आता है
सन्नाटा भी एक शोर की मानिंद दह्षा t फैला जाता है
आसरा ढून्ढ रहा हु कब से पैर कोई किनारा नज़र नहीं आता है
मर के देखे सोचा पर सुकून फिर भी नहीं आता है i aata hai
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